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एक बार फिर विरोध की आंधी शांत हो गई। एक बार फिर उन्होंने कहा कुछ और किया कुछ। हम बात कर रहे हैं सरकार के उन सहयोगी दलों की, जिन्होंने सरकार के फैसलों पर पहले तो कड़ा विरोध दिखाया लेकिन बाद में वही ढाक के तीन पात। रीटेल सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के प्रस्ताव और पेट्रो कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव की पार्टियों ने संकेत दिए हैं कि उनका इरादा सरकार से समर्थन वापस लेने का नहीं है। वह महज सरकार से दूरी बनाए रखना चाहती हैं।
वहीं, राजग सहयोगी शिवसेना ने महंगाई के विरोध में भाजपा द्वारा सरकार के इन फैसलों के खिलाफ 20 सितंबर को बुलाए गए भारत बंद में साथ नहीं देने का फैसला किया है। शिवसेना के फैसले के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी बंद से दूर ही रहना तय किया है। ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजद ने भी यही निर्णय लिया है।
ऐसे में सरकार को भरोसा है कि सहयोगियों और विपक्ष के कड़े तेवरों के बावजूद मौजूदा मुद्दों को लेकर उस पर कोई खतरा नहीं है। सरकार की बेफिक्री का आलम यह है कि उसकी प्रमुख सहयोगी तृणमूल कांग्रेस के मंत्रियों के इस्तीफे के मिल रहे संकेतों को भी वह गंभीरता से नहीं ले रही है। यह बात अलग है कि सरकार व कांग्रेस के रणनीतिकार उससे पहले तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को एक बार मनाने का कोशिश कर सकते हैं। बात बन गई तो ठीक, नहीं तो उन्हें इस बात से भी संतोष है कि अपने मंत्रियों के इस्तीफे के बाद भी ममता यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन देती रहेंगी।
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गौरतलब है कि रिटेल एफडीआइ के अलावा डीजल में 5 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि और सब्सिडी वाले छह रसोई गैस सिलेंडर देने के फैसले वापस न लेने पर सरकार को 72 घंटे का अल्टीमेटम देते हुए ममता ने कड़े फैसले लेने की बात कही थी। अल्टीमेटम की अवधि खत्म होने के बाद ममता आज अपना फैसला सुनाएंगी।
वामपंथियों समेत छह दलों से हाथ मिलाकर 20 सितंबर को सरकार के खिलाफ आंदोलन करने जा रही सपा को लेकर भी सरकार के माथे पर शिकन नहीं है। सपा महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी एफडीआइ, डीजल के दाम बढ़ने और विनिवेश के फैसलों के खिलाफ है, लेकिन वह इसके लिए सरकार से समर्थन वापस लेकर सांप्रदायिक ताकतों को मदद करने नहीं जा रही है।
बसपा प्रमुख मायावती ने डीजल मूल्य वृद्धि, सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडरों को कम करने और एफडीआइ का विरोध तो जरूर किया है, लेकिन सरकार से समर्थन वापसी पर फैसला 10 अक्टूबर को लेने का एलान किया है। इन स्थितियों के बीच, अब सारा मामला ममता के आज फैसले पर टिक गया है।
सूत्रों की मानें तो सरकार ने पेट्रो कीमतों की वृद्धि और एफडीआइ जैसे मामलों में सहयोगियों के संभावित विरोध का आकलन पहले ही करके ये फैसले लिए हैं। उसे पता था कि वे इसका समर्थन नहीं करेंगे, लेकिन कोई सहयोगी या फिर विपक्षी दल देश में अभी चुनाव नहीं चाहता। लिहाजा, ये फैसले वापस नहीं होंगे।
इस बीच, वामदलों ने 20 सितंबर को ही 12 घंटे के राष्ट्रव्यापी बंद की घोषणा की है। विपक्षी दलों के अलावा यूपीए सहयोगी सपा ने भी बंद की अलग से घोषणा की है।
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