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क्या रोबोट विद्रोह करके इंसान को ग़ुलाम बना लेंगे?

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कैंब्रिज विश्वविद्यालय के शोध वैज्ञानिक एक दिलचस्प अध्ययन की तैयारियों में जुटे हैं. इसके तहत यह पता लगाने की कोशिश होगी कि क्या तकनीक के बढ़ते प्रभाव से एक दिन मानव सभ्यता खत्म हो जाएगी.


सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ एक्सिस्टेंशिअल रिस्क (सीएसईआर) में इस बात पर भी अध्ययन होगा कि बॉयोटेक्नोलॉजी, कृत्रिम जीवन, नैनो टेक्नोलॉजी और जलवायु परिवर्तन से किस कदर ख़तरा बढ़ रहा है.वैज्ञानिकों ने कहा कि रोबोटों के एक दिन दुनिया में विद्रोह करके इंसानों को अपना ग़ुलाम बना लेने से जुड़ी चिंताओं को ख़ारिज कर देना ‘ख़तरनाक’ होगा.


इस तरह की आशंका हाल की कुछ विज्ञान पर आधारित लोकप्रिय फिक्शन फिल्मों में जताई गई है. ख़ासकर टर्मिनेटर सीरीज़ की फिल्मों के दौरान जिस तरह से स्काइनेट कंप्यूटर सिस्टम को दर्शाया गया है, उससे इन आशंकाओं को बल मिला था.फ़िल्म में स्काइनेट ऐसा सिस्टम था जिसे अमेरिकी सेना ने विकसित किया था और उसके बाद वह अपनी एक सोच-समझ विकसित कर लेता है. हालांकि यह फिक्शन यानी कल्पना पर आधारित फिल्म थी, इसके बावजूद विशेषज्ञों का कहना है कि इस मुद्दे पर शोध किए जाने की जरूरत है. प्रोफेसर प्राइस ने एएफपी न्यूज़ एजेंसी से कहा, ”यह भविष्यवाणी वाजिब लगती है कि इस या फिर अगली सदी में बुद्धिमत्ता सिर्फ़ जीव विज्ञान तक सीमित नहीं रहेगी. हम इसी दिशा में वैज्ञानिक समुदाय को सजग बनाने की कोशिश करेंगे.”


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सरकार तय कर रही है बौद्ध भिक्षु क्या खाएँ

श्रीलंका में बौद्ध भक्तों से भिक्षुओं को ऐसा भोजन दान में दिलाने की तैयारी की जा रही है, जिसे खाकर भिक्षु बीमार न हो सकें.

इसके लिए दान में दिए जाने वाले परंपरागत भोजन से हटकर एक विशेष प्रकार के भोजन की सूची बनाई जा रही है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि ऐसे बौद्ध भिक्षुओं की तादाद बढ़ती जा रही है जो पेट और पाचन से जुड़ी मुश्किलें झेल रहे हैं. ये बौद्ध भिक्षु चर्बी बढ़ाने वाले भोजन की वजह से मधुमेह और मोटापे जैसे रोगों से पीड़ित हैं.

परंपरागत रूप से भिक्षु अपने लिए खाना नहीं पकाते हैं और भक्तों द्वारा दिए गए दान पर ही निर्भर रहते हैं.

हालांकि इन भिक्षुओं को मिलने वाला अधिकांश भोजन शाकाहारी होता है लेकिन अधिकारियों को चिंता इस बात की है कि ये भोजन हमेशा सेहतमंद नही होता.

श्रीलंका के समाचार पत्र डेली मिरर के हवाले से स्वास्थ्य मंत्री मैथ्रीपाला श्रीसेना का कहना है, “धार्मिक आस्था और विश्वास के चलते अधिकांश श्रद्धालु इन बौद्ध भिक्षुओं को ऐसा भोजन देते हैं, जिसमें कोलेस्ट्रॉल की मात्रा काफी ज्यादा होती है. बौद्ध भिक्षुओं के पास इसे स्वीकार करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता. ये दौर साल भर लगातार चलता है.”


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